UP: 'सिर्फ भागकर शादी करने से सुरक्षा नहीं मिल सकती' – हाईकोर्ट की सख्त टिप्पणी
इलाहाबाद हाईकोर्ट ने कहा – सिर्फ भागकर शादी करने से सुरक्षा नहीं मिल सकती। जानें कोर्ट का पूरा फैसला, कानूनी व्याख्या और सामाजिक प्रभाव इस ब्लॉग में।

UP: 'सिर्फ भागकर शादी करने के आधार पर सुरक्षा नहीं दी जा सकती', हाईकोर्ट ने कहा- समाज का सामना करना सीखना होगा
हाल ही में उत्तर प्रदेश के इलाहाबाद हाईकोर्ट ने एक ऐसे मामले में अहम टिप्पणी की है, जो आज के समाज में रिश्तों, विवाह और सामाजिक संरचना की गहराई से पड़ताल करता है। कोर्ट ने साफ कहा कि सिर्फ भागकर शादी करने भर से यह जरूरी नहीं हो जाता कि युगल को राज्य सुरक्षा दे — उन्हें समाज का सामना करना सीखना चाहिए।
यह फैसला न केवल कानूनी रूप से अहम है, बल्कि सामाजिक दृष्टिकोण से भी गंभीर सोच की मांग करता है। आइए, इस पूरे मामले, कोर्ट की टिप्पणी, और इसके सामाजिक व कानूनी प्रभावों को विस्तार से समझते हैं।
मामला क्या था?
एक युवक और युवती, जिन्होंने परिवार की मर्जी के खिलाफ जाकर शादी कर ली थी, उन्होंने इलाहाबाद हाईकोर्ट में याचिका दायर की थी। याचिका में उन्होंने कहा कि उन्हें परिवार और समाज से जान का खतरा है, और इसलिए उन्हें पुलिस सुरक्षा दी जाए।
कोर्ट ने क्या कहा?
कोर्ट ने याचिका को खारिज करते हुए कहा:
"सिर्फ भागकर शादी करने और फिर परिवार से डरने के आधार पर राज्य सुरक्षा नहीं दी जा सकती। हर किसी को अपने निर्णयों के परिणामों का सामना करना सीखना होगा।"
कोर्ट ने आगे कहा:
- अगर हर ऐसा जोड़ा सुरक्षा मांगने लगे जो परिवार से छिपकर शादी करे, तो यह एक खतरनाक प्रवृत्ति बन जाएगी।
- अदालत ने यह भी कहा कि राज्य की जिम्मेदारी है कि वह किसी नागरिक की जान की रक्षा करे, लेकिन वह केवल असाधारण परिस्थितियों में हस्तक्षेप कर सकता है।
कोर्ट की कुछ अहम टिप्पणियाँ
1. “भागकर विवाह करना सामाजिक दृष्टिकोण से संवेदनशील मामला है।”
– यह निजी आज़ादी का विषय जरूर है, लेकिन समाज की प्रतिक्रिया से आंखें नहीं मूंदी जा सकतीं।
2. “न्यायालय व्यक्तिगत स्वतंत्रता की रक्षा करता है, लेकिन अनावश्यक सुरक्षा का समर्थन नहीं करता।”
– कानून का दुरुपयोग नहीं होना चाहिए।
3. “विवाह का मतलब है सामाजिक जिम्मेदारी।”
– सिर्फ व्यक्तिगत अधिकार नहीं, समाज के प्रति जवाबदेही भी जरूरी है।
कोर्ट का स्टैंड: व्यक्तिगत स्वतंत्रता बनाम सामाजिक संतुलन
भारतीय संविधान के तहत, अनुच्छेद 21 हर नागरिक को जीवन और व्यक्तिगत स्वतंत्रता का अधिकार देता है। इसका अर्थ यह है कि कोई भी बालिग व्यक्ति अपनी इच्छा से विवाह कर सकता है।
लेकिन वहीं दूसरी ओर, समाज और परिवार का भी एक ढांचा है — जहाँ संस्कृति, परंपरा और सामाजिक जिम्मेदारी को भी महत्व दिया जाता है।
इस केस में कोर्ट ने स्पष्ट कर दिया कि:
- राज्य हर उस जोड़े को सुरक्षा नहीं दे सकता जो परिवार के खिलाफ जाकर विवाह करे।
- सिर्फ "डर" के आधार पर सुरक्षा की मांग राज्य के संसाधनों का दुरुपयोग है।
- सभी फैसलों की जिम्मेदारी खुद उठानी होगी।
पूर्ववर्ती फैसले और उदाहरण
इससे पहले भी कई मामलों में कोर्ट ने अलग-अलग तरीके से ऐसे मुद्दों को देखा है:
सुप्रीम कोर्ट (Lata Singh बनाम उत्तर प्रदेश केस – 2006)
- कोर्ट ने साफ कहा था कि बालिगों को अपनी पसंद से विवाह करने का अधिकार है और इसमें किसी को बाधा डालने का हक नहीं।
पंजाब-हरियाणा हाईकोर्ट (2021)
- कोर्ट ने एक याचिका में कहा था कि भागकर विवाह करने वाले जोड़ों को भी संविधानिक संरक्षण मिलना चाहिए।
लेकिन हर केस के अपने तथ्य और परिस्थितियाँ होती हैं। इलाहाबाद हाईकोर्ट का यह फैसला इस दृष्टिकोण से अलग है कि यहां केवल डर का हवाला देकर राज्य सुरक्षा मांगी गई थी, जिसका कोई ठोस प्रमाण नहीं था।
सामाजिक प्रतिक्रिया
इस फैसले पर समाज में मिश्रित प्रतिक्रिया देखने को मिल रही है:
- कुछ लोगों का मानना है कि कोर्ट का यह फैसला समाज को जिम्मेदारी का पाठ पढ़ाता है।
- वहीं कुछ का कहना है कि यह फैसला युवाओं की सुरक्षा के अधिकार को सीमित कर सकता है।
इस मुद्दे पर युवाओं को क्या समझना चाहिए?
1. निर्णय लें लेकिन सोच-समझकर:
- अपने अधिकारों का प्रयोग करें, लेकिन भावनाओं में बहकर नहीं।
2. कानून को समझें:
- आपकी उम्र 18+ है तो आप विवाह कर सकते हैं, लेकिन इसका मतलब यह नहीं कि हर परिस्थिति में सरकार आपकी रक्षा करेगी।
3. संवाद को प्राथमिकता दें:
- अपने परिवार से बात करें। संवाद हमेशा टकराव से बेहतर होता है।
4. सुरक्षा की जरूरत हो तो सबूत दें:
- अगर वाकई जान का खतरा है तो उसके लिए एफआईआर, शिकायत पत्र या अन्य प्रमाण होने चाहिए।
इलाहाबाद हाईकोर्ट का यह फैसला न्यायिक संतुलन का एक अच्छा उदाहरण है – जहां व्यक्तिगत स्वतंत्रता और सामाजिक जिम्मेदारी दोनों पर बराबर ध्यान दिया गया है।
शादी एक व्यक्तिगत निर्णय है, लेकिन इसका सामाजिक प्रभाव भी होता है। यह जरूरी है कि युवा अपने फैसलों में परिपक्वता, समझदारी और जिम्मेदारी दिखाएं।
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