'इनकी हिम्मत कैसे हो गई...', केजरीवाल का फूटा गुस्सा; DPS में फीस बढ़ोतरी का विवाद गहराया
DPS स्कूल की फीस बढ़ोतरी पर अरविंद केजरीवाल ने जताई नाराज़गी। जानिए क्या है पूरा मामला, अभिभावकों की प्रतिक्रिया और सरकार की कार्रवाई।

'इनकी हिम्मत कैसे हो गई...', केजरीवाल का फूटा गुस्सा; DPS में फीस बढ़ोतरी का विवाद गहराया
दिल्ली पब्लिक स्कूल (DPS) जैसे प्रतिष्ठित शैक्षणिक संस्थानों से हम सभी उत्कृष्ट शिक्षा, अनुशासन और सामाजिक ज़िम्मेदारी की उम्मीद करते हैं। लेकिन हाल ही में, DPS द्वारा की गई अचानक फीस बढ़ोतरी ने हजारों अभिभावकों को हैरान और परेशान कर दिया है। इस विवाद ने तब और तूल पकड़ लिया जब दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल ने इसे लेकर सार्वजनिक रूप से कड़ी प्रतिक्रिया दी और पूछा – "इनकी हिम्मत कैसे हो गई?"
इस लेख में हम जानेंगे कि पूरा मामला क्या है, DPS स्कूल ने क्या कदम उठाए, अभिभावकों की क्या प्रतिक्रिया रही, और दिल्ली सरकार का इस पर क्या रुख है।
DPS स्कूल की फीस बढ़ोतरी का मामला
दिल्ली के नामी स्कूलों में शुमार DPS द्वारा नए शैक्षणिक सत्र की शुरुआत से ठीक पहले अभिभावकों को भेजे गए नोटिफिकेशन में फीस में उल्लेखनीय वृद्धि की सूचना दी गई। रिपोर्ट्स के अनुसार, कुछ ब्रांचों में 20% से लेकर 40% तक की वृद्धि की गई है, जो सामान्य मँहगाई दर से कहीं अधिक है।
अभिभावकों का कहना है कि स्कूल प्रशासन ने बिना किसी पूर्व सूचना के यह वृद्धि की, जिससे उनके बजट पर अचानक बोझ बढ़ गया।
अभिभावकों का गुस्सा और विरोध
फीस बढ़ोतरी के खिलाफ दिल्ली के कई DPS ब्रांचों के बाहर अभिभावकों ने प्रदर्शन किया। सोशल मीडिया पर भी #ReduceDPSFees और #StopFeeHike जैसे हैशटैग ट्रेंड करने लगे।
कुछ प्रमुख आपत्तियाँ:
- कोविड काल में आर्थिक दबाव: बहुत से अभिभावक अभी भी महामारी के आर्थिक असर से उबर नहीं पाए हैं।
- शिक्षा की गुणवत्ता समान: फीस बढ़ाने के बावजूद, स्कूल की बुनियादी सेवाओं या पढ़ाई में कोई बड़ा बदलाव नहीं आया है।
- पारदर्शिता की कमी: फीस बढ़ाने के पीछे क्या कारण हैं, इस पर स्पष्टता नहीं दी गई।
केजरीवाल की तीखी प्रतिक्रिया: 'इनकी हिम्मत कैसे हो गई...?'
DPS द्वारा की गई इस बढ़ोतरी पर दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल ने कड़ा रुख अपनाया। एक प्रेस कॉन्फ्रेंस में उन्होंने कहा:
"सरकारी स्कूलों की हालत बेहतर हो रही है, और अब प्राइवेट स्कूल अपनी मनमानी पर उतर आए हैं। इनकी हिम्मत कैसे हो गई बच्चों की शिक्षा को व्यापार बना देने की?"
उन्होंने कहा कि दिल्ली सरकार यह सुनिश्चित करेगी कि कोई भी स्कूल बिना सरकार की अनुमति के मनमानी फीस नहीं बढ़ा सके। इसके लिए शिक्षा निदेशालय को सख्त निर्देश दिए गए हैं।
सरकार की संभावित कार्रवाई
दिल्ली सरकार ने संकेत दिया है कि:
- DPS समेत सभी निजी स्कूलों की फीस नीति की जांच होगी।
- फीस बढ़ाने से पहले शिक्षा निदेशालय से अनुमति लेना अनिवार्य होगा।
- जिन स्कूलों ने नियमों का उल्लंघन किया है, उन पर कड़ी कार्रवाई की जाएगी।
सरकार का कहना है कि शिक्षा एक सेवा है, व्यापार नहीं। इसलिए इसका संचालन भी सामाजिक ज़िम्मेदारी के साथ होना चाहिए।
स्कूल प्रशासन की सफाई
DPS प्रशासन ने अब तक इस मुद्दे पर सीमित बयान ही जारी किया है। कुछ रिपोर्ट्स के अनुसार, स्कूल प्रबंधन का तर्क है कि:
- महँगाई और कर्मचारियों की सैलरी बढ़ोतरी को देखते हुए फीस बढ़ाना अनिवार्य हो गया था।
- गुणवत्ता बनाए रखने के लिए संसाधनों में निवेश ज़रूरी है।
- अभिभावकों को पहले से सूचना दी गई थी, हालांकि अभिभावक इसे नकारते हैं।
क्या कहता है कानून?
दिल्ली स्कूल एजुकेशन एक्ट (DSEA), 1973 के तहत:
- कोई भी निजी स्कूल मनमाने तरीके से फीस नहीं बढ़ा सकता।
- हर बढ़ोतरी के लिए स्कूल को शिक्षा निदेशालय से पूर्व स्वीकृति लेनी होती है।
- अगर स्कूल ऐसा नहीं करते, तो उन पर जुर्माना और मान्यता रद्द तक की कार्रवाई संभव है।
इस कानून का उल्लंघन करने पर DPS भी जांच के घेरे में आ सकता है।
शिक्षा बनाम व्यापार की बहस
यह विवाद एक बार फिर उस पुरानी बहस को सामने लाता है – क्या शिक्षा एक सेवा है या व्यापार?
जब स्कूल शिक्षा को महंगे पैकेज और हाई-प्रोफाइल मार्केटिंग में बदल देते हैं, तब यह सवाल और ज़्यादा प्रासंगिक हो जाता है। क्या निजी स्कूलों का उद्देश्य केवल मुनाफा कमाना होना चाहिए, या समाज को बेहतर नागरिक देना?
निष्कर्ष
DPS में फीस बढ़ोतरी का मामला केवल एक स्कूल तक सीमित नहीं है। यह देशभर में हो रही उस प्रवृत्ति का हिस्सा है जहाँ शिक्षा को एक महंगा उत्पाद बना दिया गया है। मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल की सख्त प्रतिक्रिया एक संकेत है कि अब सरकार इस पर अंकुश लगाने को तैयार है।
अभिभावकों के लिए संदेश:
- अपने अधिकार जानिए।
- अगर आपको किसी स्कूल की फीस में अनियमितता लगे, तो शिक्षा निदेशालय में शिकायत करें।
- एकजुट होकर आवाज़ उठाएँ — तभी बदलाव संभव है।
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