पूजा के बाद क्यों जरूरी है आरती करना? जानिए पुराणों और विज्ञान के अनुसार इसका महत्व
जानिए पूजा के बाद आरती क्यों जरूरी होती है, इसके पीछे धार्मिक, वैज्ञानिक और आध्यात्मिक कारण क्या हैं। पुराणों में बताए गए आरती के महत्व को समझें।

पूजा-पाठ भारतीय संस्कृति की आत्मा है, और आरती उसका अंतिम लेकिन अत्यंत महत्वपूर्ण चरण। आपने देखा होगा कि किसी भी देवता की पूजा के अंत में आरती अवश्य की जाती है। मंदिर हो या घर, पूजा तब तक पूर्ण नहीं मानी जाती जब तक आरती न हो जाए।
लेकिन क्या आपने कभी सोचा है कि आरती क्यों की जाती है? क्या यह केवल एक धार्मिक परंपरा है, या इसके पीछे कोई गूढ़ आध्यात्मिक और वैज्ञानिक रहस्य छिपा है?
हम जानेंगे कि:
- पूजा के बाद आरती क्यों आवश्यक है
- पुराणों में इसका क्या उल्लेख है
- आरती करने के वैज्ञानिक लाभ क्या हैं
- और इसे कैसे करना चाहिए
आरती क्या है?
‘आरती’ शब्द की उत्पत्ति संस्कृत के “आरात्रिका” से हुई है, जिसका अर्थ है – अंधकार को दूर करने वाली क्रिया। यह एक ऐसी प्रक्रिया है जिसमें दीपक को देवता के समक्ष घुमाया जाता है, मंत्रों और भजनों के साथ उन्हें नमन किया जाता है।
आरती केवल दीप घुमाना नहीं, यह एक ऊर्जा संचार की क्रिया है – श्रद्धा और विश्वास का प्रतीक।
पूजा के बाद आरती करना क्यों जरूरी है?
1. पूजा की पूर्णता
हिंदू धर्म में पूजा के पांच मुख्य अंग माने गए हैं – आवाहन, स्नान, वस्त्र, भोग और फिर आरती। आरती इन सभी का समापन करती है और ईश्वर के प्रति समर्पण का अंतिम भाव दर्शाती है।
2. ईश्वर को विदा करना
जिस तरह अतिथि को बुलाकर अंत में विदा किया जाता है, वैसे ही पूजा के अंत में आरती द्वारा देवता को सम्मानपूर्वक विदा किया जाता है।
3. सकारात्मक ऊर्जा का प्रसार
दीपक की लौ और मंत्रों की ध्वनि घर के वातावरण को ऊर्जा से भर देती है। यह नकारात्मकता को दूर कर मानसिक शांति देती है।
पुराणों में आरती का महत्व
स्कंद पुराण, पद्म पुराण, और विष्णु धर्मोत्तर पुराण जैसे ग्रंथों में आरती का विशेष महत्व बताया गया है। इन ग्रंथों के अनुसार:
- आरती करने से ईश्वर की विशेष कृपा प्राप्त होती है।
- यह साधक के चित्त को स्थिर करती है।
- भगवान आरती से प्रसन्न होकर अपने भक्त के दोष हर लेते हैं।
उदाहरण:
शिव पुराण में कहा गया है कि –
"जो भक्त भक्ति-भाव से दीपक की आरती करता है, उसे सहस्त्र यज्ञों के बराबर पुण्य मिलता है।"
वैज्ञानिक दृष्टिकोण से आरती के लाभ
1. प्रकाश और ध्वनि का संयोजन
दीपक की लौ (प्रकाश) और घंटी/शंख की ध्वनि (ध्वनि तरंगें) मिलकर एक शक्तिशाली कंपन उत्पन्न करते हैं जो वातावरण को शुद्ध करते हैं।
2. सांसों पर नियंत्रण
आरती के समय धीमे-धीमे गाया गया भजन और मंत्र उच्चारण प्राणायाम की तरह कार्य करता है, जिससे तनाव कम होता है।
3. ध्यान केंद्रित करना
आरती करते समय व्यक्ति देवता की मूर्ति पर ध्यान केंद्रित करता है। यह ध्यान की एक अवस्था है जो मानसिक शांति देती है।
आरती से जुड़ी विशेष परंपराएं
- आरती सदैव घड़ी की दिशा में (clockwise) घुमानी चाहिए।
- दीपक में घी या तिल का तेल उपयोग करना अधिक शुभ माना गया है।
- आरती के समय घंटी बजाना, शंख फूंकना, और ताली बजाना आवश्यक होता है।
- आरती के बाद उसे हाथों से सिर पर फेरने से सकारात्मक ऊर्जा का संचरण होता है।
आरती के प्रकार
1. दैनिक आरती – सुबह और शाम की जाती है
2. विशेष आरती – त्यौहारों या विशेष अवसरों पर
3. मंगला आरती – ब्रह्म मुहूर्त में होती है
4. शयन आरती – रात में भगवान को विश्राम देने से पहले
प्रसिद्ध आरतियाँ
- ॐ जय जगदीश हरे (विष्णु जी के लिए)
- जय शिव ओंकारा (भगवान शिव)
- आरती कुंजबिहारी की (श्रीकृष्ण)
- जय अम्बे गौरी (माँ दुर्गा)
इन आरतियों में श्रद्धा से जुड़कर गाया गया हर शब्द, एक ऊर्जा तरंग बनकर हमारे आसपास फैलता है।
घर में आरती करने के नियम
- घर के मंदिर या पूजा स्थान को साफ-सुथरा रखें।
- आरती से पहले दीपक और कपूर तैयार रखें।
- आरती के समय ध्यान रखें कि मन शांत और श्रद्धा से भरा हो।
- आरती के बाद सभी सदस्य उसे हाथ जोड़कर स्वीकार करें।
आरती और जीवन का संबंध
आरती केवल एक धार्मिक अनुष्ठान नहीं, बल्कि यह हमारे आत्मिक और सामाजिक जीवन में संतुलन लाने का एक माध्यम है। यह क्रिया हमें:
- ईश्वर के प्रति विनम्र बनाती है
- भक्ति में स्थिरता देती है
- दिन की शुरुआत और अंत को शुभ बनाती है
आरती एक शुद्धिकरण की प्रक्रिया है – मन का, घर का, और आत्मा का। पूजा के बाद जब हम दीपक से आरती करते हैं, तो वह केवल ज्योति नहीं, बल्कि हमारे भावों का प्रकाश होता है जो प्रभु के चरणों में समर्पित होता है।
इसलिए, हर पूजा के अंत में आरती अवश्य करें। यह न केवल धार्मिक दृष्टिकोण से आवश्यक है, बल्कि वैज्ञानिक और आध्यात्मिक रूप से भी अत्यंत लाभकारी है।
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