छिन्नमस्ता जयंती 2025: तिथि, पूजा विधि, महत्त्व और लाभ
छिन्नमस्ता जयंती 2025 इस वर्ष 11 मई को मनाई जाएगी। जानिए माँ छिन्नमस्ता की पूजा विधि, तांत्रिक और आध्यात्मिक महत्त्व, तथा इस दिन पूजन से प्राप्त होने वाले लाभ।

छिन्नमस्ता जयंती 2025: एक दिव्य रहस्य की आराधना
भारत की धार्मिक परंपराओं में शक्ति की उपासना का विशेष स्थान है। दस महाविद्याओं में से एक माँ छिन्नमस्ता एक अनोखे और रहस्यमयी स्वरूप की देवी हैं। इनकी उपासना तांत्रिक परंपरा में अत्यधिक प्रभावशाली मानी जाती है।
छिन्नमस्ता जयंती 2025 की तिथि
इस वर्ष छिन्नमस्ता जयंती रविवार, 11 मई 2025 को मनाई जाएगी।
यह पर्व वैशाख शुक्ल चतुर्दशी के दिन मनाया जाता है। तिथि की अवधि:
- चतुर्दशी आरंभ: 10 मई 2025 को शाम 5:29 बजे
- चतुर्दशी समाप्त: 11 मई 2025 को शाम 8:01 बजे तक
इस अवधि में माँ छिन्नमस्ता की पूजा करना विशेष फलदायी माना जाता है।
देवी छिन्नमस्ता: रहस्यमयी स्वरूप
माँ छिन्नमस्ता का अर्थ है – "जिसका सिर छिन्न (कटा) है।"
यह स्वरूप अत्यधिक प्रतीकात्मक है:
- अपने ही सिर को काटकर दो सहचरणों को रक्त से तृप्त करना त्याग और बलिदान का प्रतीक है।
- यह स्वरूप बताता है कि सच्ची भक्ति में अहंकार का त्याग, इच्छाओं का बलिदान, और आत्मिक शक्ति का जागरण आवश्यक है।
ऐतिहासिक-सांस्कृतिक महत्त्व
- यह देवी कामरूपा में स्थापित मानी जाती हैं (कामाख्या के निकट)।
- उनके तीन रक्तधाराएँ – एक स्वयं के लिए, दो अन्य भक्तों के लिए – मातृत्व और आत्म-समर्पण का महान संदेश देती हैं।
????️ पूजा विधि (Vilakku Pooja Style एवं तांत्रिक विधान)
1. प्रातःकालीन स्नान
- स्नान के पश्चात् शुद्ध सफेद या लाल वस्त्र धारण करें।
- पूजा स्थल को गंगाजल से शुद्ध करें।
2. मूर्ति या चित्र स्थापना
- देवी छिन्नमस्ता का चित्र उत्तर या पूर्व दिशा की ओर रखें।
- उनके साथ डाकिनी-वर्णिनी या जया-विजया स्वरूप भी रखें यदि संभव हो।
3. पूजन सामग्री
- लाल पुष्प (गुलाब, गुड़हल), चंदन, कपूर, धूप, दीप, सिंदूर, रक्तचंदन, नारियल, कमल बीज आदि।
4. मंत्र जाप:
ॐ ऐं ह्रीं क्लीं छिन्नमस्तायै नमः
(108 बार जाप करें)
यह बीज मंत्र तांत्रिक और आध्यात्मिक दोनों लाभ देता है।
5. भोग अर्पण
- नारियल, लाल फल, गुड़, पायसम (खीर) आदि अर्पित करें।
6. आरती:
- विशेष आरती करें जिसमें शक्ति की जयघोष हो।
- दीप जलाएं और घंटी बजाते हुए श्रद्धा से आरती उतारें।
पूजा के लाभ
लाभ |
विवरण |
आत्मबल में वृद्धि |
माँ छिन्नमस्ता की पूजा से मनोबल और साहस बढ़ता है |
तांत्रिक सिद्धियाँ |
साधकों को तांत्रिक साधनाओं में सफलता मिलती है |
अहंकार विनाश |
यह पूजा अहंकार और क्रोध जैसी नकारात्मक शक्तियों को समाप्त करती है |
भय और संकट से रक्षा |
भय, दुर्घटनाओं और आत्मिक बाधाओं से रक्षा मिलती है |
आंतरिक शुद्धि |
मानसिक और भावनात्मक शुद्धिकरण होता है |
तांत्रिक साधना में स्थान
- माँ छिन्नमस्ता की साधना तांत्रिकों के लिए अत्यंत प्रभावशाली मानी जाती है।
- यह साधना कुण्डलिनी जागरण और मूलाधार से सहस्रार तक ऊर्जा प्रवाह के लिए की जाती है।
- उनके स्वरूप से योग, बलिदान और अनंत शक्ति का अभ्यास होता है।
लोक मान्यताएँ और आधुनिक संदर्भ
आज के समय में भी छिन्नमस्ता की पूजा उन लोगों द्वारा की जाती है जो जीवन में आत्म-नियंत्रण, साहस और निडरता प्राप्त करना चाहते हैं।
मान्यता है कि:
- छिन्नमस्ता जयंती पर मनोकामनाएँ शीघ्र पूर्ण होती हैं।
- यह देवी उन भक्तों की विशेष रक्षा करती हैं जो जीवन में स्थिरता और आत्म-बल चाहते हैं।
कथा संक्षेप
एक बार माता पार्वती अपनी दो सखियों के साथ मंदाकिनी नदी में स्नान कर रही थीं।
दोनों सखियों को भूख लगी। माता ने उन्हें प्रतीक्षा करने को कहा, लेकिन वे तुरंत भूख से व्याकुल हो गईं।
माँ ने बिना देर किए अपने सिर को काट लिया और उसके तीन धाराओं में बहते रक्त से सखियों को तृप्त किया – यही बना छिन्नमस्ता का स्वरूप।
माँ छिन्नमस्ता की पूजा केवल तांत्रिक क्रियाओं तक सीमित नहीं है। यह साधना हमारे अंदर की नकारात्मकताओं को हटाकर सकारात्मक ऊर्जा से भर देती है।
11 मई 2025 को छिन्नमस्ता जयंती के शुभ अवसर पर श्रद्धा से की गई पूजा से निश्चित ही जीवन में सकारात्मक बदलाव आएंगे।
Disclaimer (अस्वीकरण):
यह लेख धार्मिक स्रोतों, पौराणिक ग्रंथों और सांस्कृतिक परंपराओं पर आधारित है। इसमें दी गई पूजा विधियाँ और मान्यताएँ आम जनमान्यता का हिस्सा हैं। किसी भी धार्मिक अनुष्ठान को करने से पहले अपने कुल पंडित, गुरु या विशेषज्ञ से सलाह लेना उचित रहेगा। लेखक और प्रकाशक किसी भी दैहिक, मानसिक, आर्थिक परिणाम के लिए उत्तरदायी नहीं हैं।
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