ट्रंप के टैरिफ के बाद यूरोप में सस्ते चीनी माल की भरमार, EU को सता रहा ये डर
ट्रंप के टैरिफ के बाद चीनी कंपनियों ने सस्ते उत्पाद यूरोप में उतार दिए हैं, जिससे EU के उद्योगों पर संकट गहरा गया है। जानिए पूरा मामला और इसके असर।

ट्रंप के टैरिफ के बाद यूरोप में सस्ते चीनी माल की भरमार, EU को सता रहा ये डर
अमेरिका और चीन के बीच छिड़ी टैरिफ वॉर (Tariff War) अब केवल इन दो देशों तक सीमित नहीं रह गई है। इसके प्रभाव दुनिया के अन्य हिस्सों, विशेषकर यूरोपियन यूनियन (EU) पर भी साफ़ नज़र आ रहे हैं। अमेरिका द्वारा चीनी वस्तुओं पर भारी टैरिफ लगाने के बाद, चीन ने अपने सस्ते उत्पादों को यूरोपीय बाजारों की ओर मोड़ दिया है। नतीजा यह हुआ है कि यूरोपीय बाजार सस्ते चीनी सामान से पट गए हैं और स्थानीय उद्योगों पर खतरा मंडराने लगा है।
क्या है मामला?
पूर्व अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने चीन पर उच्च टैरिफ (आयात शुल्क) लगाकर अमेरिकी मार्केट को चीन के सस्ते माल से बचाने की कोशिश की थी। इसका उद्देश्य चीन को व्यापार संतुलन में सुधार के लिए बाध्य करना था। लेकिन इस कदम का एक अनपेक्षित परिणाम यह हुआ कि चीन ने अपने उत्पादों को अन्य खुले बाजारों, विशेषकर यूरोप, अफ्रीका और लैटिन अमेरिका की ओर डायवर्ट करना शुरू कर दिया।
यूरोप बना नया टारगेट
यूरोपीय संघ पहले से ही मुक्त व्यापार और प्रतिस्पर्धा के समर्थक रहा है। चीन को इसका फायदा मिला और उसने भारी मात्रा में अपने उत्पाद — इलेक्ट्रॉनिक्स, खिलौने, सौर पैनल, बैटरियां, स्टील उत्पाद, और कपड़ा — यूरोपियन मार्केट में उतार दिए। ये सामान स्थानीय उत्पादों की तुलना में काफी सस्ते होते हैं, जिससे उपभोक्ताओं को भले ही राहत मिल रही हो, लेकिन यूरोपीय निर्माता कंपनियों की नींद उड़ी हुई है।
EU को किस बात का डर सता रहा है?
1. स्थानीय उद्योगों को नुकसान
सस्ते चीनी माल से EU के छोटे और मध्यम उद्यमों (SMEs) पर सीधा असर पड़ रहा है। यूरोप के निर्माण क्षेत्र, खासकर जर्मनी, फ्रांस और इटली के मैन्युफैक्चरिंग यूनिट्स, अब प्रतिस्पर्धा नहीं कर पा रहे हैं।
2. डंपिंग का खतरा
EU को यह भी डर है कि चीन जानबूझकर अपने उत्पादों को कम कीमत पर यूरोपीय बाजार में डाल रहा है — जिसे "डंपिंग" कहा जाता है। यह WTO नियमों का उल्लंघन हो सकता है, और दीर्घकाल में यूरोप की अर्थव्यवस्था के लिए नुकसानदायक सिद्ध हो सकता है।
3. रणनीतिक निर्भरता
महामारी और यूक्रेन-रूस युद्ध के बाद EU पहले ही चीन पर रणनीतिक निर्भरता को कम करने की योजना बना रहा है। लेकिन जब बाजार में चीनी माल की भरमार होती है, तो इस निर्भरता को खत्म करना और भी मुश्किल हो जाता है।
4. राजनीतिक दबाव
यूरोप के अंदर भी अब राजनैतिक दलों और ट्रेड यूनियनों का दबाव बढ़ रहा है कि EU चीन के खिलाफ सख्त नीति अपनाए। इससे व्यापार और राजनीति में तनातनी और बढ़ सकती है।
चीन की रणनीति क्या है?
चीन यह जानता है कि अमेरिका में अब उसके लिए दरवाज़े सीमित हैं। ऐसे में वह अब यूरोप, अफ्रीका और दक्षिण एशिया में अपने उत्पादों की पकड़ मज़बूत कर रहा है। वह:
- अपने माल की कीमतें घटाकर यूरोपीय मार्केट में वॉल्यूम बढ़ा रहा है।
- Belt and Road Initiative के माध्यम से लॉजिस्टिक्स आसान कर रहा है।
- सौर पैनल, बैटरी, EV और अन्य "ग्रीन टेक्नोलॉजी" से जुड़े प्रोडक्ट्स को बढ़ावा देकर नए क्षेत्रों में घुसपैठ कर रहा है।
EU की प्रतिक्रिया क्या रही?
EU ने अब तक निम्नलिखित कदम उठाए हैं:
एंटी-डंपिंग जांच
EU की ट्रेड कमिशन ने चीनी सौर पैनल, स्टील और EV बैटरियों पर डंपिंग की जांच शुरू कर दी है।
स्थानीय उद्योगों को सब्सिडी
स्थानीय उत्पादकों को प्रतिस्पर्धा में बनाए रखने के लिए अनुदान और टैक्स छूट दिए जा रहे हैं।
डायवर्सिफिकेशन
चीन पर निर्भरता कम करने के लिए भारत, वियतनाम और मेक्सिको जैसे देशों से व्यापार बढ़ाया जा रहा है।
क्या उपभोक्ता खुश हैं?
सस्ते चीनी माल की वजह से उपभोक्ताओं को कम कीमतों में बेहतर विकल्प मिल रहे हैं। उदाहरण के लिए, इलेक्ट्रॉनिक्स और मोबाइल एक्सेसरीज में चीनी उत्पादों की बाढ़ आई हुई है। लेकिन लॉन्ग टर्म में यदि स्थानीय कंपनियां बंद होती हैं, तो विकल्प कम होंगे और वर्चस्व का खतरा बढ़ जाएगा।
भारत के लिए क्या संदेश?
भारत के लिए इस पूरी स्थिति से दो प्रमुख संदेश मिलते हैं:
1. मेक इन इंडिया को बढ़ावा देना जरूरी है – ताकि घरेलू उद्योग ग्लोबल स्तर पर प्रतिस्पर्धा कर सके।
2. ट्रेड डिप्लोमेसी में संतुलन जरूरी है – अमेरिका और यूरोप के साथ संबंधों को बनाए रखते हुए चीन से सतर्क रहना जरूरी है।
ट्रंप की टैरिफ नीति ने भले ही अमेरिका में चीन के लिए दरवाज़े बंद कर दिए हों, लेकिन इसके दूरगामी असर अब यूरोपियन यूनियन में देखे जा रहे हैं। चीनी माल की सस्ती बाढ़ ने जहां उपभोक्ताओं को राहत दी है, वहीं स्थानीय उद्योगों की नींव हिला दी है। आने वाले दिनों में EU और चीन के बीच व्यापारिक तनाव और बढ़ सकता है।
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